Pandit Jaychandji Chhabada
पंडित जयचंद जी छाबड़ा
हिंदी जैन साहित्य के गद्य पद्य लेखक विद्वानों में पंडित जयचंदजी छाबड़ा का नाम उल्लेखनीय है। पंडितजी का जन्म जयपुर से 30 मील की दूरी पर स्थित फागी नामक ग्राम में हुआ था। पंडित जयचंद जी के पिता का नाम मोतीराम जी था जो कि पटवारी का कार्य किया करते थे इसी कारण पंडित जी का वंश पटवारी वंश के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मात्र 11 वर्ष की आयु में ही कवि का ध्यान जैन धर्म की ओर आकृष्ट हो गया और उन्होंने जैन दर्शन और तत्वज्ञान का गहन अध्ययन किया। विक्रम संवत 1821 में जयपुर में इंद्रध्वज पूजा महोत्सव का विशाल आयोजन किया गया। उस उत्सव में आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी के आध्यात्मिक प्रवचन होते थे इनके वचनों को सुनकर ही पंडित जयचंदजी की जैन धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा हो गई और उन्होंने लगभग 4 वर्ष जयपुर में ही रहकर जैन दर्शन के सैद्धांतिक ग्रंथों का गंभीर अध्ययन किया। पंडित जयचंद जी का स्वभाव सरल और उदार था। उनका रहन-सहन व वेशभूषा अत्यंत साधारण थी। वह योग्य श्रावक के साथ साथ तत्व अध्ययन के रसिक थे। अनेक जिनवाणी के जिज्ञासु साधर्मी इनके पास निरंतर आते रहते थे। पंडित जयचंदजी के पुत्र का नाम नंदलाल था जो कि अत्यंत सुयोग विद्वान थे और पंडित जी के पठन-पाठन आदि कार्यों में सहयोग प्रदान किया करते थे। एक बार जयपुर में एक विदेशी विद्वान शास्त्रार्थ करने आया और उससे नगर के अधिकांश विद्वान पराजित हो गए तब राज्य के अधिकारियों और विद्वान पंचों ने पंडित जयचंदजी से उस विद्वान से शास्त्रार्थ करने की प्रार्थना की परंतु पंडितजी ने अपने स्थान पर अपने पुत्र नंदलाल को भेजा और नंदलालजी ने अपनी युक्तियों और जैन दर्शन के अभ्यास से उस विद्वान को परास्त कर दिया। इस कारण से नंदलालजी का बहुत सन्मान हुआ और उसे नगर की ओर से उपाधि प्रदान की गई। पंडित जयचंदजी द्वारा रचित सभी टीका ग्रंथों में पंडित नंदलाल जी ने सहायता की है। इसका उल्लेख पंडित जी ने सर्वार्थसिद्धि की प्रशस्ति में किया है। पंडित जयचंद जी का समय विक्रम संवत 19वीं शती है। इन्होंने निम्नलिखित ग्रंथों की भाषा वचनिका लिखी हैं।
1. सर्वार्थसिद्धि वचनिका
2. तत्वार्थ सूत्र भाषा
3. प्रमेय रत्नमाला टीका
4. स्वामी कार्तिकेय अनुप्रेक्षा टीका
5. द्रव्य संग्रह टीका
6. समयसार टीका
7. देवागम स्तोत्र टीका
8. अष्टपाहुड़ भाषा
9. ज्ञानार्णव भाषा
10. भक्तामर स्तोत्र
11. पद संग्रह
12. चंद्रप्रभ चरित्र
13. धन्य कुमार चरित्र
पंडित जयचंदजी की वचनिकाओं की भाषा ढूंढारी है। इस तरह पंडित जयचंद जी छाबड़ा का जैन साहित्य को समृद्ध करने में अभूतपूर्व योगदान रहा है।